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MUMBAI. आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप 2023 की ग्लोबल पार्टनर सऊदी अरब की कंपनी अरामको इन दिनों चर्चा में है। बंजर रेगिस्तान से दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी बनने तक के सफर और इसके पीछे के संघर्ष के साथ दूरदर्शिता की कहानी हर किसी के लिए प्रेरणादायक है। जानते हैं 180 लाख करोड़ रुपए मार्केट कैप वाली कंपनी अरामको की कहानी...
पहले विश्व युद्ध के बाद पड़ी कंपनी की नींव
1933 का वह साल, स्थान था सऊदी अरब का पश्चिमी इलाका। दूर-दूर तक रेगिस्तान, बंजर और बिना इंसानों के बसाहट की जगह, जहां कोई जाना पसंद नहीं करता था। दुनिया पहला विश्व युद्ध 1914 से 1918 के बीच लड़ चुकी थी और आर्थिक मंदी से भी वाकिफ हो चुकी थी। ज्यादा से ज्यादा फैक्ट्री लगाने की रेस में हर देश अंधाधुंध दौड़ रहा था। तभी सऊदी के इस इलाके में दो अमेरिकी जियोलॉजिस्ट यानी भूवैज्ञानिक पहुंचे। वो कुछ खोज रहे थे, तभी उनके हाथ लगा बंजर रेगिस्तान में अथाह तेल का कुंआ। यहां से जिस तेल कंपनी की शुरुआत हुई, वो आज की अरामको यानी अरब अमेरिकन ऑयल कंपनी है। दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी।
1933 : कैलिफोर्निया की ऑयल कंपनी का सऊदी से एग्रीमेंट
अमेरिका के कैलिफोर्निया की स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी ने 1933 में सऊदी के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया था। तब इस इलाके में अल-सलीम वंश का राज था। इस वंश के पास इतने पैसे नहीं थे कि इन्फ्रास्ट्रक्चर और क्रूड ऑयल की खोज में इन्वेस्ट कर सके। राजा अब्दुल अजीज ने अमेरिकी कंपनी स्टैंडर्ड को सऊदी में तेल की खोज करने की इजाजत दे दी। कंपनी और राजा के बीच एग्रीमेंट साइन हुआ। इस एग्रीमेंट के मुताबिक, अमेरिका और सऊदी की मुनाफे में 50-50 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ अरामको कंपनी बनी।
1980 : सऊदी सरकार ने अरामको की पूरी हिस्सेदारी खरीदी
1933 से बाद अगले 46 सालों तक अमेरिका और सऊदी अरब की पार्टनरशिप चलती रही। फिर आया साल 1980, इस साल सऊदी सरकार ने अरामको की पूरी हिस्सेदारी अमेरिका से खरीद ली। कंपनी का नाम भी अब सऊदी अरामको हो गया। कमाई भी बंपर होने लग गई।
छह कुंओं में भी नहीं निकला तेल, अमेरिका ने काम रोका
सऊदी अरब की गर्मी आम गर्मी नहीं होती। तपिश इतनी तेज होती है मानो झुलसा कर ही छोड़ेगा। ऐसे मौसम के बीच अमेरिका के दो जियोलॉजिस्ट टॉम बर्गर और मैक्स स्टीनके रेगिस्तान में हर रोज भटकते रहे। कहा जाता है कि यह इलाका अमेरिका के दो टेक्सास राज्य के बराबर था। यह खोज करीब तीन सालों तक चली। कुल 6 ड्रिलिंग की थी, लेकिन इसमें से तेल या गैस कुछ भी नहीं मिला था। उधर कैलिफोर्निया की स्टैंडर्ड कंपनी के लाखों डॉलर सऊदी में खर्च हो चुके थे। जब तीन साल बाद भी कुछ नहीं मिला तो उनका सब्र जवाब देने लगा। अमेरिकन ऑयल इंडस्ट्री के एक्सपर्ट एलेन वाल्ड अपनी किताब सऊदी इंक में बताते हैं कि छठवें कुएं से जियोलॉजिस्ट को यकीन था कि कुछ ना कुछ निकलेगा। इसी उम्मीद में 4500 फीट तक उसकी खुदाई करते चले गए। फिर भी कुछ नहीं मिला।
अंतिम यानी 7वां कुआं खोदा गया, निकल पड़ा तेल
कंपनी ने तब दोनों जियोलॉजिस्ट को संदेश भेजा कि अब कोई नया कुआं नहीं खोदा जाएगा। कंपनी ने मान लिया कि सऊदी अरब में कोई तेल है ही नहीं। कैलिफोर्निया से आए फरमान के बाद भी जो स्थानीय गाइड था वो बर्गर और स्टीनके को लेकर आगे बढ़ता रहा। इब्र नाम के इस गाइड को रेगिस्तान का चप्पा-चप्पा पता था। कंपनी के मना करने के बावजूद स्टीनके ने एक और 200 फीट का ड्रिल करने को कहा। बस वो दिन था और आज का दिन है। उस 7वें नंबर के ड्रिल ने सऊदी अरब की किस्मत बदल दी। ड्रिल के पहले दिन उस कुएं से 1500 बैरल कच्चा तेल निकला था। कुछ ही दिनों में ये बढ़कर 4 हजार हो गया। इसके बाद राजा अब्दुल अजीज ने 1939 में आधिकारिक रूप से एक टोटी खोली, जिसमें तेल रास तरूना से अमेरिका के गोल्फ कोस्ट तक बने पाइपलाइन में गया। यहीं से असल में सऊदी अरामको की शुरुआत भी हुई।
आज क्या है कंपनी की कमाई
अरामको के तेल की ब्रिकी जितनी ज्यादा बढ़ती गई उसका प्रॉफिट भी बढ़ता गया। आज यह तेल एक्सपोर्ट करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। 2018 में कंपनी ने 13.6 बिलियन बैरेल क्रूड ऑयल प्रोड्यूस किया था। । 2019 में जब कंपनी पहली बार स्टॉक मार्केट में लिस्ट हुई, तब यह दुनिया की सबसे ज्यादा वैल्यू वाली कंपनी बनकर उभरी। इसके इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग की वैल्यू थी 1.7 ट्रिलियन डॉलर। यह अब तक दुनिया के किसी भी कंपनी की सबसे बड़ी पब्लिक ऑफरिंग वैल्यू है।
1980 में अरामको पूरी तरह सऊदी अरब की कंपनी बनी
बात है 1971 की। सऊदी अरब के रास तनुरा से दुनियाभर में एक साल में जाने वाला तेल 100 करोड़ बैरल को क्रॉस कर गया। इस माइलस्टोन ने सऊदी अरब सहित उन सभी देशों के कान खड़े कर दिए, जहां तेल के भंडार थे। उन्हें यह एहसास हुआ जिस चीज का जखीरा उनके पास है, उसकी कितनी ज्यादा मांग है। 1960 के दशक में बना OPEC यानी ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज भी इस समय एक्टिव हो गया। ये देश अमेरिका से इस बात की मांग करने लगे कि हमें अपने तेल की कीमत और ज्यादा चाहिए। इसी मांग को लेकर सऊदी धीरे-धीरे अरामको में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने लगा। 1973 में सऊदी ने इसकी 25 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली। 1974 में ये हिस्सेदारी बढ़कर 60 फीसदी हो गई। आखिरकार 1980 में सऊदी ने अरामको पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया।